






(सिहोर, मध्य प्रदेश में कुंजवान गाँव में कदम बढ़ाते चलो (के.बी.सी.) से जुडी ये युवतियां समाज की पित्रसत्तात्मक संरचना पे कुछ संगीन सवाल उठा रही हैं और पूछ रही हैं ऐसा क्यूँ की हमेशा लड़कियों पर ही पाबंदियां लगाईं जाती हैं)
लड़कियां पावन दुआयें हैं, जीवन की नयी शुभकामनाएं हैं |
फिर भी क्यूँ लड़कियां कमज़ोर होती हैं?
क्यूँ सिर्फ लड़कों को ही हक़ है कि पुरे अधिकार उन्हें ही मिले और लड़कियों को नहीं?
घर के सभी कामों में लड़कियां आगे पर बहार के कामों या घूमने में क्यूँ सिर्फ़ लडकें ही आगे?
क्या लड़की पैदा होते ही घर का सारा काम करना सीखती है? या जब माँ के पेट में होती है तभी ये सब सीख लेती है?
क्या ये परम्परायें इश्वर ने बनाई है या समाज ने?
लड़कियों को तो घर की लक्ष्मी ही माना जाता है, फिर उन पर ही इतनी पाबंदियाँ क्यूँ ?
क्या लड़की का पढ़ाई करना पाप है या उनका जन्म लेना एक श्राप है?
पेट से निकलने से पहले ही क्यूँ मार देते हैं?
ना बोलने पर मुँह पर तेज़ाब क्यूँ डालते हैं?
ऐसा लड़कियों के साथ ही क्यूँ होता है?
पूछो, पूछने से ही जवाब मिलते हैं! पूछो ऐसा क्यूँ!
क्या हुआ है इस ज़माने को, क्या समझते हैं ये लोग और ये समाज अपने आप को, क्या लड़कियां ही हमेशा कमज़ोर रहेंगी?
नहीं, बहुत किया ज़ुल्म इस समाज ने लड़कियों पर | अब देखेंगें ये लोग और ये समाज जब के.बी.सी. दिखलायेगा अपना कमाल |
लड़कियां कमज़ोर नहीं होती, हमें पीछे मत करो | लड़का और लड़की को एक समान समझो |





