






ये कहानी गुडगाँव की लम्बी लम्बी इमारतों के बीच बसी एक बस्ती से है | मार्च महीने की सात तारीख को सरिता के घर में बड़ी हलचल थीए सब लोग ऊपर से लेकर नीचे तक भागादौड़ी में लगे थे| नीचे खाना बन रहा था और ऊपर छत पर टेंट लगा हुआ था| ऐसा लग रहा था जैसे किसी की शादी हो या कोई और पार्टी… सरिता और उसकी कुछ साथी सबको खाना खिलने में व्यस्त थी वही दो महिलाएं दरवाज़े पर डटी थी और सबको आदेश दे रही थी की सभी लोग छत पर इक्कठा हो | सरिता के घर की छत पर आज एक कार्यक्रम का आयोजन हुआ था जिसमे मोहल्ले की सभी घरेलु कामगार महिलाओ को बुलाया गया था |
कार्यक्रम की शुरुआत बेटियों के कुछ सवालो से हुई जो की उन्होंने ने एक नाटक के ज़रिये सबके सामने रखे| इस नाटक में रिया (वालिदाद्ध) सबसे सवाल पूछती है की ऐसा क्यूँ …? ऐसा क्यूँ की लड़कों को इतनी छूट मिलती है की उनसे कोई पूछता नहीं की कहा जा रहे होए कहा से आ रहे होघ् और दूसरी तरफ लड़कियों को अपनी बात भी रखने का कोई हक़ नहीं है| उनकी बात कोई सुनना भी नहीं चाहता | एक सवाल ये भी था की जब भी कुछ गलत होता है क्या हमेशा गलती सिर्फ बाहर वाले व्यक्ति की होती है|वो व्यक्ति जो हमारे लिए बाहर का है| किसी के लिए तो वो भी घर का व्यक्ति होगा ना द्य हम कब अपने घर के लड़को(भाईयों और बेटों) को पूछना शुरू करेंगे की वो क्या करते है| बेटियों के इन्ही सवालो के साथ हमने महिला दिवस के कार्यक्रम की शुरुआत करी | ये सवाल आज जरुरी हो गए है की हम खुद से ये पूछे की मोहल्ले के अच्छा न होने के बहाने कब तक हम बेटियों को घर पर बंद रखना चाहते हैघ् और मोहल्ला को सुधारने की ज़िम्मेदारी किसकी है|
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इन सवालो की चर्चा से पहले सभी को ये जानकारी दी गयी की आज हम क्या बात करने आये है सरिता ने सबको बताया की 8 मार्च को पूरी दुनिया में महिला दिवस मनाया जाता है| और हम सभी यहाँ आज उसी के लिए इक्कठा हुए है| महिला दिवस की ज़रूरत हमें इसी लिए पड़ी थी क्योंकी महिलाओ और पुरुषों को एक सामान अधिकार नहीं थे| महिला दिवस की ज़रूरत आज भी इसी लिए है की 100 साल बाद भी हमें समान अधिकारों के लिए लड़ना पड़ता है और समाज उसे स्वीकारता नहीं
हम कैसा भविष्य अपने बच्चो को देना चाहते है| हम क्या सोचते है अपनी बेटियों के भविष्य के बारे मे? क्या हमारी बेटियां घर में बंद रह कर वो कर पाएंगी जिसका सपना हम देखते है| सभी को एक कागज़ दिया गया जिसमे एक कदम की परछाई थी| सभी को कहा गया की वो अपनी बेटियों के लिए जो सपना देखती है वो लिखे| ये एक शुरुआत है की हम उन सपनो को समझे और उसकी तरफ अपने कदम बढ़ाये| उसके लिए सभी ने तय किया की बस्ती में हम एक ग्रुप बनायेंगे जहाँ हम उन सपनो को साकार करने के लिए काम करेंगे द्य ये महिला दिवस हम मना रहे है अपनी अगली पीढ़ी की आज़ादी और सुरक्षित और अच्छे भविष्य के नाम|
प्रातिभ मिश्रा
सीनियर प्रोग्राम ऑफीसर प्रिया





