अशंकिनी - सिलीगुड़ी की युवतियों की कहानी

सिलीगुड़ी की कदम बढ़ाते चलो की कुछ युवतियाँ अपना परिचय “अशंकिनी” के नाम से देती हैं | अशंकिनी का अर्थ है कि जिसके मन में कोई शंका न हो, यानि कि जो निर्भय और नि:संकोच है | तो कैसे बनी ये युवतियाँ निर्भय और नि:संकोच?

ये युवतियाँ भारत की सीमा के पास के इलाकों में रहती हैं | इन इलाकों में मानव तस्करी तो होती ही है और साथ ही साथ, अकसर मजबूर माँ-बाप को अपने बच्चों को भी बेचना पड़ता है | अगस्त 2016 में एक ऐसी ही घटना हुई, जिसकी जानकारी के.बी.सी. की इन युवतियों को मिल गयी |  

सिलीगुड़ी की इन युवतियों ने के.बी.सी की कार्यशालाओं में मानव तस्करी के बारे में समझा था और उन्हें यह भी बताया गया था कि जब भी ऐसी घटना के बारें में जानकारी मिले तो किन सरकारी संस्थाओं/विभागों को सूचित करना है | तो जब उन्हें पता चला की एक परिवार ने अपनी नवजात शिशु को बेज दिया है तो उन्होनें जल्द ही अपने स्कूल के अधिकारियों, बाल कल्याण समिति और डिस्ट्रिक्ट लीगल सर्विसेज अथॉरिटी को एक पत्र के माध्यम से सूचित कर दिया | फलस्वरूप, पुलिस ने उस नवजात शिशु को ढूँढ निकाला और परिवार को भी समझाया कि वे ऐसा दुबारा न करें |

इस घटना के पश्चात इन युवतियों ने एक कदम बढ़ाते चलो समिति बनाई, जिसका नाम उन्होनें अशंकिनी रखा | इस समिति के माध्यम से यह युवतियाँ आस पास के इलाकों और स्कूलों में लिंग समानता के बारें में जागरूकता फैलाती हैं और समुदाय में मानव तस्करी के प्रति सतर्कता भी बढ़ाती हैं | इन निर्भय युवतियों ने निश्चय कर लिया है कि वे कदम बढ़ाते चलो के माध्यम से न सिर्फ और युवाओं को अपने साथ जोड़ेंगी, बल्कि एक ऐसा समाज स्थापित करेंगी जहाँ हर लड़की और औरत निर्भयता से अपना जीवन व्यतीत कर सकें |