प्रियंका की कहानी: एक नई सोच की शुरुआत

15 साल की प्रियंका, हरियाणा के पानीपत ज़िले के हथवाला गांव में रहती है। वह पानीपत के सीनियर सेकेंडरी स्कूल में दसवीं कक्षा में पढ़ती है। करीब सात महीने पहले, प्रियंका केबीसी (कदम बढ़ाते चलो) प्रोग्राम से जुड़ी। प्रियंका को केबीसी प्रोग्राम से सोनिया ने जोड़ा। वह मार्था फैरेल फाउंडेशन से जुड़ी हैं, और हरियाणा में केबीसी प्रोग्राम का संचालन देखती हैं। 

प्रोग्राम का सबसे पहला सत्र ही प्रियंका के लिए सबसे यादगार रहा। पहले सत्र में जब प्रियंका ने लड़का-लड़की के बीच होने वाले भेदभाव के बारे में सुना, तो उसे पहली बार महसूस हुआ कि कोई है जो उसकी बात सुन सकता है। इससे पहले, उसे लगता था कि लड़कियों के साथ भेदभाव होना स्वाभाविक है। लेकिन उसके मन में हमेशा यह सवाल उठता था – "ऐसा हमारे साथ ही क्यों होता है?"  प्रियंका ने बताया “इस सत्र में उन भेदभावों पर चर्चा हुई, जो लड़कियों को घर और समाज में झेलने पड़ते हैं, जैसे – घर से बाहर जाने पर पाबंदी, मनपसंद कपड़े पहनने पर रोक, केवल लड़कियों से घर के काम करवाना, और लड़कों को हर काम की आज़ादी देना।” इस चर्चा ने प्रियंका और उसकी दोस्तों को गहराई से प्रभावित किया। उन्होंने महसूस किया कि जो चीज़ें उन्हें स्वाभाविक और सामान्य लगती थीं, वे वास्तव में भेदभाव का हिस्सा हैं। 

प्रियंका ने कहा, “केबीसी ग्रुप में शामिल होने के बाद मेरी सोच में बड़ा बदलाव आया। पहले मुझे यह भी नहीं पता था कि मेरे साथ घर में जो छोटी-छोटी बातें होती हैं, वे लिंग-आधारित भेदभाव का हिस्सा हैं।” प्रियंका के माता-पिता और भाई कभी उसे अकेले बाहर नहीं जाने देते थे, लेकिन उसके भाई के लिए ऐसा कोई नियम नहीं था। उससे कोई यह नहीं पूछता था कि वह कहाँ जा रहा है और किसके साथ जा रहा है। लेकिन जब प्रियंका या उसकी बहनें कहीं जाने की बात करतीं, तो कई तरह की बातें सुनाई जातीं – "अकेले बाहर जा रही हो? ज़माना खराब है!" अगर वे अपनी पसंद के कपड़े पहनना चाहतीं, तो घरवाले सबसे पहले रोकते, और फिर समाज भी अपनी नज़रें टेढ़ी कर लेता। पड़ोसी माता-पिता को समझाते कि "लड़की है, इसे खुली छूट मत दो, बिगड़ जाएगी!" ऐसे ही न जाने कितने अनुभव प्रियंका ने हर दिन देखे और झेले हैं। 

जब उसने सेशन के बाद अलग-अलग मुद्दों पर अपने परिवार और दोस्तों से बात करनी शुरू की, तो शुरुआत में किसी ने उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया। उसके परिवार वालों ने भी उसकी बातों को गंभीरता से नहीं लिया, लेकिन प्रियंका ने हार नहीं मानी। हर दिन वह इस मुद्दे पर कुछ न कुछ बोलती रहती, और धीरे-धीरे घरवालों ने उसकी बातों को समझना शुरू किया। इसका असर यह हुआ कि जो परिवार पहले उसे 12वीं के बाद पढ़ाई करने से रोकने की बात कर रहा था, वही अब उसे कॉलेज भेजने की बात कर रहा है। “अब जब मुझे कभी अकेले बाहर जाना होता है, तो परिवार वाले बिना किसी रोक-टोक के जाने देते है,” प्रियंका ने बताया।

केबीसी के सत्र ने प्रियंका के जीवन पर गहरा प्रभाव डाला। उसने समझा कि इस मुद्दे पर खुलकर चर्चा करनी चाहिए। कई बार सिर्फ बातचीत से भी चीज़ें बदलने लगती हैं। “लिंग आधारित भेदभाव को खत्म करने के लिए दोस्तों को जागरूक करना होगा और घर में इस पर चर्चा करनी होगी,” प्रियंका ने कहा। 

प्रियंका ने बोला कि हिंसा कई रूपों में होती है, लेकिन इसकी जड़ लोगों की सोच में छुपी है। यदि सोच गलत होगी, तो यह हिंसा को जन्म देगी। पर अगर सोच सही होगी, तो समाज में बदलाव लाया जा सकता है। यह सब सोच ही तो है – "अगर लड़की जींस पहनती है, तो वह बिगड़ी हुई है। अगर वह खुलकर हंसती है, तो उसका चाल-चलन ठीक नहीं।" ऐसी रूढ़िवादी सोच ही हिंसा को बढ़ावा देती है। लोग अपने आप ही धारणा बना लेते हैं कि कौन अच्छा है और कौन बुरा। प्रियंका का मानना है कि अगर इस भेदभाव को खत्म करना है, तो सबसे पहले अपनी सोच बदलनी होगी।

प्रियंका के अनुसार इस बदलाव की शुरुआत घर से करनी होगी। छोटे-छोटे भेदभावों पर खुलकर बात करनी होगी। इसके अलावा, टीवी सीरियलों और फिल्मों में भी बदलाव लाने की ज़रूरत है, क्योंकि वहाँ जो दिखाया जाता है, वह मानसिकता को बहुत प्रभावित करता है। सीरियलों में यह दिखाया जाता है कि जो लड़की सूट-सलवार पहनती है और घर का काम करती है, वही संस्कारी होती है, जबकि जो लड़की जींस पहनती है और बाहर काम करना चाहती है, उसे बिगड़ा हुआ दिखाया जाता है। फिल्मों में हीरो को ताकतवर और हीरोइन को कमजोर दिखाया जाता है। यह सब समाज की सोच पर गहरा असर डालता है। इसलिए इस गलत सोच को बदलने के लिए आवाज़ उठानी होगी। “संस्कार कपड़ों से नहीं, बल्कि विचारों और कार्यों से होते हैं। एक जींस पहनने वाली लड़की भी संस्कारी हो सकती है, और एक बिजनेसवुमन भी। लड़कियाँ कमजोर नहीं होतीं,” प्रियंका ने कहा।

प्रियंका ने वादा किया कि केबीसी से ली गई सीख को आगे बढ़ाने के लिए जो कुछ भी उसने सीखा है, उसे अपने दोस्तों और परिवार तक पहुँचाएगी, ताकि सभी मिलकर एक ऐसे समाज का निर्माण कर सकें जहाँ लड़कियों और लड़कों के बीच किसी प्रकार का भेदभाव न हो।